Sunday, October 25, 2009

Krishna Form at Yamuna Tat waiting for Food from Brahmin Wives

सेलखड़ी

गेरू


पोतनी [ no image ]

उरस वि. [सं.निरस] जिसमें रस न हो। बिना रस का। पुं. [सं.उरस्] 1.छाती। वक्षःस्थल। 2.ह्रदय।

Monday, August 17, 2009

PRM1 pg 319

bhanuBhupa-ghara baajat badhaii ( PRM 1 - 319 )
विदेह वि. [सं.] 1.देह अर्थात् शरीर से रहित। जिसका शरीर न हो। 2.हत। बेहोश। 3.शारीरिक चिन्ताओं आदि से रहित। 4.सांसारिक बातो से विरक्त। 5.मृत। पुं.1.वह जिसकी उत्पत्ति माता-पिता से न हुई हो। -देवता। भूत-प्रेत आदि। 2.मिथिला के राजा जनक का एक नाम। मिथिला देश। 4.मिथिला देश का निवासी। मैथिल। 5.राजा निमि का एक नाम।

सूर पुं.[सं.][स्त्री.सूरी] 1.सूर्य। 2.आक। मदार। 3.बहुत बड़ा पंडित। आचार्य। 4.वर्तमान अवसर्पिणी के सत्रहवें अर्हत् कुंथु के पिता का नाम। (जैन) 5.छप्पय छंद के 71 भदों में से 54 वाँ भेद जिसमें 16 गुरु, 120 लघु, कुल 136 वर्ण और 152 मात्राएँ होती हैं। 6.मसूर। 7.दे.‘सूरदास’। वि.अन्धे या नेत्र-हीन व्यक्ति के लिए आदरसूचक विशेषण। पुं.[सं.शूकर,प्रा.शअर] 1.सूअर। 2.भूरे रंग का घोड़ा। पुं.[देश.] पठानों का एक भेद। जैसे-शेरशाह शूर। पुं. 1.=शूर (वीर)। 2.=शूल।

यदु-भूप पुं. [सं.ष.त.] श्रीकृष्ण।

सुर-भूप पुं.[सं.ष.त.] 1.इन्द्र। 2.विष्णु।

पीयूष-भानु पुं. [ब.स.] चंद्रमा।

Thursday, July 30, 2009

Dictionary

पुं. [सं.विÖभ्रम(चलना)+घञ्] 1.चारों ओर घूमना। चक्कर लगाना। भ्रमण। 2.किसी काम या बात में होनेवाला भ्रम। भ्रांति। किसी काम या बात में होने वाला शक या संदेह। 4.पारस्परिक व्यवहार में किसी काम या बात का अर्थ,आशय या उद्देश्य समझने में होनेवाली भूल। और का और समझना। गलत-फहमी। (मिसअन्डर-स्टैडिंग) 5.मनोविज्ञान में किसी विशिष्ट मानसिक विचार के कारण किसी ज्ञानेन्द्रिय के द्वारा होनेवाला ऐसा भ्रम जो प्रायः निराधार होता है। निर्मूल भ्रम। (हैल्यूसिनेशन) जैसे-अँधेरे में कोई आकृति या भूत-प्रेत दिखाई देना। 6.साहित्य में संयोग श्रृंगार के प्रसंग में स्त्रियों का एक हाथ जिसमें वे प्रियतम का आगमन सुनकर अथवा उससे मिलने के लिए जाने के समय उतावली और उत्सुकता के कारण कुछ उलटे-पुलटे गहने-कपड़े पहन लेती है। 7.घबराहट। विकलता। 8.शोभा।

लता स्त्री. [सं.Öलत्(लपेटना)+अच्+टाप्] 1.ऐसे विशिष्ट प्रकार के पौधे की संज्ञा जिनके कांड और शाखाएं पतली नरम तथा लचीली होती हैं तथा जो किसी आधार के सहारे खड़ी होती हैं,और आधार के अभाव में जमीन पर फैल जाती हैं। जैसे-अंगूर की लता। 2.कोमल कांड या शाखा। जैसे-पद्यलता। 3.सुंदरी स्त्री।

यूथ पुं. [सं.Öयु+थक्,नि,.दीर्घ] 1.एक स्थान पर इकट्ठे होकर या मिलकर चरने,घूमने-फिरने वाले आदि पशुओं का समूह। 2.मनुष्यों का जत्था। 3.सैनिकों का दल। 4.फौज। सेना।

PRM 1 Pg 178
Prabhu Ji| Bhale Bure Ham Tere

उदर पुं. [सं.उद√दृ(विदारण)+अच्] [वि.औदरिक] 1.शरीर का वह भाग जो ह्रदय और पेडू (pelvis (n) १. पेडू, कोख )के बीच में स्थित है तथा जिसमें खाई हुई वस्तुएँ पहुँचती है। पेट (एब्डाँमेन) 2.भीतर का ऐसा भाग जिसमें कोई चीज रहती हो या रह सके।

तृष्णा स्त्री. [सं.Öतृष्+न-टाप्] 1.प्यास। तृषा। 2.लाभणिक अर्थ में मन में होनेवाली वह प्रबल वासना जो बहुत अधिक कुछ विकल रखती हो और जिसकी हज में तृप्ति न होती हो। 3.प्रायः अधिक समय तक बनी रहनेवाली कामना।

Tuesday, July 21, 2009